कक्षा 10 की एनसीईआरटी हिंदी पाठ्यपुस्तक "क्षितिज भाग 2" में शामिल "मानवीय करुणा की दिव्य चमक" प्रसिद्ध कवि और लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक महत्वपूर्ण कविता है। सक्सेना जी हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक हैं, जिनकी कविताएँ मानवीय भावनाओं और सामाजिक समस्याओं पर गहरी दृष्टि प्रदान करती हैं।
"मानवीय करुणा की दिव्य चमक" कविता में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने मानवीय करुणा और संवेदनशीलता की सुंदरता और महत्त्व को उजागर किया है। इस कविता में लेखक ने करुणा को एक दिव्य चमक के रूप में चित्रित किया है, जो मानवता की वास्तविक सुंदरता को प्रकट करती है।
कविता में सक्सेना जी ने करुणा को एक अत्यंत महत्वपूर्ण मानवीय गुण के रूप में प्रस्तुत किया है, जो समाज की वास्तविक समस्याओं और मानवता की जरूरतों को समझने में मदद करता है। उन्होंने यह बताया है कि करुणा न केवल एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है, बल्कि यह एक उच्चस्तरीय मानवीय मूल्य भी है जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
कविता का भावार्थ यह है कि करुणा और संवेदनशीलता के बिना, मानवता अधूरी है। "मानवीय करुणा की दिव्य चमक" के माध्यम से कवि ने यह संदेश दिया है कि सही मायनों में मानवता तभी संभव है जब हम दूसरों की पीड़ा और दुःख को समझें और उनके प्रति संवेदनशील रहें। यह कविता हमें यह भी समझाती है कि सच्ची करुणा समाज में आत्मीयता और सहयोग को बढ़ावा देती है और हमें मानवता की ऊँचाई पर ले जाती है।
"मानवीय करुणा की दिव्य चमक" कविता का महत्त्व इस बात में है कि यह मानवीय भावनाओं और सामाजिक उत्तरदायित्व की महत्वपूर्णता को उजागर करती है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यह रचना छात्रों को यह सिखाती है कि करुणा और संवेदनशीलता समाज में आदर्श मूल्य हैं और हमें इन गुणों को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है। यह कविता समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा देती है और मानवता की वास्तविक चमक को पहचानने का आग्रह करती है।